जलियांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919) – एक भयावह इतिहास

Er Chandra Bhushan
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जलियांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919) – एक भयावह इतिहास

जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे क्रूर और दर्दनाक घटनाओं में से एक है। यह हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर (पंजाब) में हुआ था, जब ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने निहत्थे भारतीयों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था।

हत्याकांड की पृष्ठभूमि :

1919 में ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट लागू किया था, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के जेल में डाला जा सकता था। इस कानून का पूरे देश में विरोध हुआ। महात्मा गांधी, डॉ. सत्यपाल, और डॉ. सैफुद्दीन किचलू जैसे नेताओं ने इस काले कानून के खिलाफ आवाज उठाई। 10 अप्रैल 1919 को सत्यपाल और किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे अमृतसर में विरोध प्रदर्शन और दंगे भड़क उठे।

13 अप्रैल 1919 – वह काला दिन:

बैसाखी का दिन होने के कारण जलियांवाला बाग में हजारों लोग एकत्रित हुए थे। इनमें कई लोग बैसाखी मेला देखने आए थे और कुछ लोग रॉलेट एक्ट के विरोध में हो रही सभा में शामिल होने आए थे।

जब जनरल रेजिनाल्ड डायर को इस सभा की जानकारी मिली, तो वह बिना किसी चेतावनी के अपने सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग पहुंचा और मुख्य द्वार को घेर लिया।

जनरल डायर का अमानवीय आदेश :

  • डायर ने बिना कोई चेतावनी दिए अपने 90 ब्रिटिश और गोरखा सैनिकों को निहत्थे भारतीयों पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया।
  • सैनिकों ने 10 मिनट तक लगातार गोलीबारी की।
  • लगभग 1650 गोलियां चलाई गईं।
  • लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे, लेकिन बाग के चारों ओर ऊँची दीवारें थीं और निकलने का एकमात्र रास्ता ब्रिटिश सैनिकों ने रोक दिया था।
  • कई लोग कुएं में कूद गए, जिससे वहां दर्जनों शव जमा हो गए।

नरसंहार के भयावह आंकड़े :

ब्रिटिश सरकार के अनुसार, इस हत्याकांड में 379 लोग मारे गए और 1200 से अधिक घायल हुए। लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 1000 से अधिक लोग शहीद हुए और 1500 से अधिक घायल हुए थे।

हत्याकांड के बाद की घटनाएँ : 

  • महात्मा गांधी ने इस हत्याकांड से दुखी होकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया।
  • रवींद्रनाथ टैगोर ने "नाइटहुड" की उपाधि लौटा दी।
  • उधम सिंह नामक क्रांतिकारी ने 1940 में लंदन में जनरल डायर को गोली मारकर बदला लिया।

निष्कर्ष : 

जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक दर्दनाक अध्याय था, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। इस घटना ने भारत में ब्रिटिश शासन के प्रति गहरी नफरत पैदा कर दी और स्वतंत्रता संग्राम को और तेज कर दिया। आज जलियांवाला बाग एक राष्ट्रीय स्मारक है, जहां शहीदों की याद में एक अमर ज्योति जलती रहती है।

यह हत्याकांड ब्रिटिश हुकूमत की क्रूरता का प्रतीक बन गया और भारत की आजादी की लड़ाई को और मजबूती दी।

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